
Bihar: छातापुर प्रखण्ड मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में शुक्रवार को शीतलता का पर्व जुड़-शीतल हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। यह पर्व मैथिली पंचांग के मुताबिक बैसाख के प्रथम दिन नूतन वर्ष के अवसर पर मनाए जाने वाली पर्व है। यह पर्व प्रेम एवं आस्था का प्रतीक है। इसमे गांव के वृद्धजन अपने से नीचे उम्र के लोगों को शुख शांति एवं दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं। पर्व की महत्ता के बारे में जानकारी देते हुते पंडित कमदानंद झा, राज किशोर गोस्वामी, गोपाल गोस्वामी ने कहा कि जुड़ शीतल पर्व की खास महत्ता मिथिलांचल में है।
कहा कि पुरानी परंपराएं हालांकि अब पुरानी पड़ती जा रही है । लेकिन मिथिला के बाशिंदे अब भी पुरानी परंपराओं को निभा रहे हैं। जुड़-शीतल पर्व के साथ मिथिला में नया साल शुरू हुआ है। प्रकृति का संयोग है कि मैथिली के नये साल की शुरूआत तपती गरमी से शुरू होती है तो बड़े-बुजुर्ग छोटों के सिर पर सुबह सवेरे पानी देकर जुड़-शीतल पर्व से इस नये साल के आगमन का स्वागत करते हैं । ताकि यह शीतलता सदा बरकरार रहे। घर की बुजुर्ग महिलाएं इस दिन अपने परिवार समेत पास-पड़ोस के बच्चों का बासी जल से माथा थपथपा कर सालों भर शीतलता के साथ जीवन जीने की आशीर्वाद देती है।
हरेक साल की भांति इस साल भी प्रथम बैशाख को मैथिली नूतन वर्ष के अवसर पर मनाये जाने वाली पर्व जुड़-शीतल सम्पूर्ण मिथिलांचल सहित नेपाल के मिथिलांचल में हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। आज के दिन मिथिलांचल वासियों के घरों में चूल्हा नहीं जलाने की भी परम्परा रही और इस मौके पर प्रकृति से जुड़ते हुए सत्तू और आम के टिकोला की चटनी को खाया जाता है। इस वजह से इस पर्व को कोई सतुआनी तो कोई बसिया पर्व भी कहते हैं। वैसे आज दिन और रात को खाने की सभी व्यंजन एक दिन पूर्व की रात्रि में ही अक्सर बना लिया जाता है।
जुड़-शीतल पर्व की महत्ता कोशी
सीमांचल सहित मिथिलांचल क्षेत्र में अधिक होती है। इस दिन महिला, पुरुष और बच्चे सभी आम दिनचर्य से हटकर पेय जल के सभी भंडारण स्थलों जैसे कुआं, तालाब, आहार, मटका की साफ़-सफाई सहित बाट की भी सफाई करना नहीं भूलते हैं। बाट यानी सड़क पर जल का पटवन कर आम राहगीरों के लिए भी शीतलता की कामना करते है। इस पर्व का चर्चा इसलिए भी जरुरी है की लोग प्रकृति और पडोसी की चिंता से मुक्त होते जा रहे हैं।पर्यावरण को स्वच्छ रखने की दिशा में यह पर्व काफी महत्वपूर्ण है।
बावजूद इसके मिथिलांचल में भी इस पर्व में भारी गिरावट आई है। न केवल लोगों ने इस पर्व को मनाना भूल गया है बल्कि मनाने वाली महिलाओं को भी सत्कार करना भूल गए हैं। खैर, आज एक तरफ मैथिली नववर्ष है तो अभिवंचिति की लड़ाई लड़ने वाले और तिब्बत की जंग जीतने वाले राजा शैलेश की भी जयंती है। नेपाल के सिरहा बगीचा में राजा शैलेश का गहवर आज भी दर्शनीय है और खास कर अभिवंचित समुदाय उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
इधर, उक्त पर्व को लेकर छातापुर निवासी सोनू कुमार, उषा देवी ने भी बात रखते हुए इसे शीतलता का पर्व बताया ।